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पथराई आंखें .....

...............पथराई आंखें ...............
महफ़िल सजी थी ग़ज़लों की,
हरि गीतों की और भजनो की,
बढ़चढ़ कर के कवि आए,
कवियित्रियों से बराबरी न कर पाए,
उनकी थी आवाज़ मधुर बहुत ,
दर्द भरे थे गीत बहुत
 महफ़िल को किसी ने रुला डाला,
महफ़िल को भावुक कर डाला
वो एक सलोनी लड़की थी,
दुबली पतली थी , सुन्दर थी
पर आंखें पथराई लगतीं थीं,
शायद प्रतीक्षा रत होगी,
 अरसे से उसकी चाहत होगी,
दिल मे अति दर्द भरा होगा,
छिपा कर सबसे रक्खा होगा,
पर वाणी न दर्द छिपा पाई,
वो दर्द ज़बां तक ले आई,
उफ़ कितना दर्द भरा होगा,
जाने कैसे वो सहा होगा,
आंखों में आंसूं एक नहीं
दिल पर पत्थर रक्खा‌ होगा।
प्रथम पुरस्कार मे नाम हुआ ,
न पुरस्कार उस से ग्रहण हुआ।
जल्दी जल्दी भागी घर को,
आंसू न दिखा सकती सब को,
बस क्षमा याचना‌ करती थी,
कर बद्ध आभार जताती थी।
काश उस से मिलना  होता
अपनत्व का कुछ अवसर होता,
शायद दुखती रग पर उसके
मैं हाथ रख इंगित कर देता।
मैं शान्त रहा कुछ नहीं बोला 
पर भूल न पाया हूं उसको
वह पथराई आंखों वाली,
लड़की कोमल भावों वाली
कभी तो किस्मत उसकी चमकेगी
चेहरे पर लाली दौड़ेगी
आंखें तब मुस्कुरायेंगी
और दिल की खुशियां वो पायेगी।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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3 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 11:52 AM

Nice

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वानी

30-Jan-2023 11:27 AM

हर गम को भूल एक दिन वो भी खुश हो जायेगी

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